दूबि के जाल मा धूरि फंसी
जब गंगनधूरि अपार फुलानी
कांध पय ढारि चले झिंगुरी
मछुआरन कै अब चानिन चानी !
सावन माहिं पियास बुझी
रहीं जेठ तपी धरती महारानी
ताल तलाई नदी भरिगै
दिखै खेत सिवान मा पानिन पानी !
महकत बाग मा फर अउ फूल
अउ चउकम् सैंड्हा दाल पुरानी
भीजत भाजत दउरि रहे
लडिके चहुं ओरि करैं मनमानी !
घूरि घूरि बदरा डेरुवावै
बदलत छिन छिन रंग निसानी
अंगनम् ठाढि हरी तुलसी
अउ खेतन मा लहरायि किसानी !
नाचत भोर मजोर बनन माहि
देखत रुत कुलि ओरि सुहानी
हंसन जोड़ा साथे उड़े
नदी तीरन केरि करैं निगरानी !
लाल लाल लहरयि चुनरी
बजी छुन छुन पायल राग न जानी
अयिसै रहव मोरे गांव न जाइउ
लउटि कभौ बरखा महरानी !!
!! संजय श्रीवास्तव, अवधी गोंडा !!
८४३७१३२८९७