शिक्षा भवा जहर ।।

शिक्षा भवा जहर ।।

भदौ २९ ,कपिलवस्तु ।
शिक्षक तथा सामाजिक अभियन्ता परशुराम यादवले अवधी भाषामा “शिक्षा भवा जहर ” शिर्षकको सन्देश मुलुक कविता सामाजिक संजाल मार्फत सार्बजनिक गरेका छन । यस्तो रहेको छ कविता :-
शिक्षा भवा जहर ।।
शिक्षा भवा जहर, रुठे गावँगढी, बाप महतारी ।
दुश्मनी भवा जमिन्दारेन से सवसे ढेर नाराज पुजारी ।
दुलहीन कय गुरु मन्त्र कय चिन्ता, हम्मय दाना पानी ।
अम्मा कय हरदम स्वर्ग कय चिन्ता, बाब कय प्रधानी ।
हमरे उपर नजर गणाए बाबा सवसे बोल्यँ ।
बात बात पे सब के आगे हमरय पोल खोल्यँ ।
बात बात पे प्रश्न उठावय, करय धर्म कय हानी ।
अलगु भइया बेटवा समझाओ, करय बहुत नादनी ।
समय समय पर छुट्टी पावय घर पे जब उ आवय ।
निरहु घुरहु टोलाटाटी सव कय उ भडकावय ।
बेटवा पढाइब गलती होइगय भूला बात पुरानी ।
परग परग पर बात उठावयँ, बहुत करय हैरानी ।
शिक्षा भवा जहर हम्मय रुठे गाँवगढी,बाप, महतारी।
दुश्मनी भवा जमिन्दारेन से सवसे ढेर नराज पुजारी।
जात धर्म सव छोड दिहिस उ, अपने से मुह मोड लिहिस उ ।
मेहरारुन कय अधिकार वतावय, विटिया कय स्कुल पठावय।
चमारेन कय बराबरी मे बैठावय, कोरीन कय उ काम करावय।
दउरो पल्टु बुडिगय बाँस, अव गाँव कय होइहयँ सत्या नास।
ओकरे घरे विदेशी आवँय, हम्मय कव्वो नाइ बोलावयँ ।
शिक्षा भवा जहर हम्मय रुठे गाँवगढी,बाप, महतारी ।
दुश्मनी भवा जमिन्दारेन से सवसे ढेर नराज पुजारी ।

दुइ कौडी कय अलगट्टु कय गावँ कय अगुवा दिहिस बनाइ ।
काव करि कुछ समझ न आवय, दिमाक दिहिस बौरवाइ ।
अलगु बाउ कृपा कइकय बेटवक देव समझाइ ।
जवने से हम्मन कय जात धर्म बचिजाइ ।
पुस्तौ से चलत रिति रिवाज पे भि प्रश्न चिन्ह उठावय ।
बेद पूराण रामायण लागय लेखक कय मन कय बात ।
नरक स्वर्ग अव पाप पुन्य सव बाबा कय हो खाद ।
नाराज होइकय बाबा बोलें गावँ मे संकट आइ ।
हमार गल्ति केहु, ना दिहेव, जब जान केहु कय जाइ,
हमरो गोद ना लागय जब कलिकाल जाय बउरार्इ ।
दादा लाल ताम भएँ उठाइन हाथ मे लाठी,
कहिन, अवहिन तक नाटक बहुत किहेव अव कुछ न रहिगय बाकी ।
आज से घण्टु सुधरी जाव भइया नइतो उठिजाइ हमार लाठी ।
हम बहुत डेराय गयन, घबराय गयन, हमार मति गय मारी
शिक्षा हमार दुश्मन भवा, रुठी गएँ गावँ,बाप महतारी ।
एक छिन लम्मा साँस लिहेन, अव हिम्मत बान्हिकय बोलेन,
हमार कवन गलति यमहा, सही बात जब बोलेन
चोरचकार पाखण्डीन कय जब पोल आज हम खोलेन
स्वर्ग नरक के देखे है, अव कइसय वोका जानिन् ।
बिन पैसा कय पूजा करयँ तब हम बाबा कय मानी ।
गौं दान अव सोना दन खरतिन पहिले रहें परेशान,
गौ दान कहाँ चलिगय जब चरयँ तोहार धान ।
ओन्हय धर्मी कब मानब जव गौ दान वोयँ लिहयँ ।
मठमन्दिर मे उठल दान पैसा गरिबन कय दिहैं ।
जव बाबा जजमान कय घर मे चौका नाइ बरइहैं ।
वह्य दिन बाबा हर लोगन कय धर्म गुरु कहइ हयँ ।
यतना सुनतय दादा कय हमरे गवा माथा चकराय ।
कहिन माफ करो भइया अब न हम तुहँ से न बतुवाब ।
शिक्षा भवा जहर, रुठे गावँगढी, बाप महतारी ।
दुश्मनी भवा जमिन्दारेन से सवसे ढेर नाराज पुजारी ।

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