
न बढिके जाडा न चढिके गर्मी बस मन लुभावन
मंद मंद बयार सुगंध भरा अइसन मौसम पावन
जागत सारा बागबगिया पेडपउधा लिए मुस्कान
सजिके हरियर बाना करै स्वागत वसंत कै आवन
।।२।।
अमवा बउरै डडिया पहुँडै पल्लो फुंगी फनफनाय
लइकै लब्दा दउडैं लडिके टिकोरा झोर कै खायँ
सीताबिलरिया खुशी से फुदकै नीचे कब्बो उपर
बउर पे कहूँ फूलन पर चहकत भँवरा गुनगुनाय
।।३।।
करै कोइलिया कुहुकुहु सुनाय संगीत कै झंकार
पंख खोल मजोर नाचै खुश लउकै जगत संसार
मनई चउआ चिरई सजीव निर्जीव मे चारिउओर
खेत खरिहान जंगल मे मंगल वसंत कै रहै बहार
।।५।।
लाही लहलहाय गम्कय लहसुन, धनिया औ सोवा
दुलहिन जेस सजा धर्ती हरियर वस्त्र प्रकृति बोवा
लाल, पीयर अउर गुलाबी मे चमनाचमन श्रृंगारित
धर्ती मगन, गगन मगन औ मगन सबु पाताल होवा
।।६।।
कवियन कै छंद दिए कविता फुरावेक उठे उफान
गीतकारेन कै गीत फुरै शब्द बीनै कै करै आसान
मन कै भाव दिल कै उमडन धारा प्रवाह बनजाय
तकलीफ मे मलहम बनै वसंत चित्रण कै गुणगान
✍️✍️ राजेश कुमार चौधरी “जिज्ञासु”